प्रेम, जिद और आत्मसम्मान! पत्नी को पानी के लिए तरसाया, बापूराव ने 40 दिनों में खोद डाला अपना कुआं
महाराष्ट्र के वाशीम जिले के बापूराव ताजने ने अपनी पत्नी के साथ हुए जातिगत भेदभाव से आहत होकर खुद अपने हाथों से 40 दिन में कुआं खोद डाला. बिना किसी मशीन या भू-जल सर्वे के, ताजने ने यह काम पूरा किया और अब इस कुएं से न सिर्फ उनका परिवार बल्कि पूरा गांव पानी पा रहा है. उनकी यह जिद और मेहनत दशरथ मांझी जैसी मिसाल बन गई है, जिसने सामाजिक भेदभाव की दीवारें तोड़ दीं.
महाराष्ट्र के वाशीम जिले के कालंबेश्वर गांव के एक गरीब मज़दूर बापूराव ताजने ने वो कर दिखाया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. जिस समाज ने उसकी पत्नी को सिर्फ उसकी जाति के आधार पर पानी के लिए तरसा दिया था. उसी समाज को बापूराव ने अपनी मेहनत और जिद से करारा जवाब दिया. अपनी पत्नी की बेइज्जती से आहत होकर बापूराव ने ठान लिया कि अब वो किसी के सामने हाथ नहीं फैलाएंगे, न भीख मांगेंगे, न गिड़गिड़ाएंगे… बल्कि खुद अपने हाथों से अपने घर के लिए कुआं खोदेंगे.
अपमान ने जगा दी जिद
ये कहानी शुरू होती है उस दिन से, जब बापूराव की पत्नी प्यास बुझाने गांव के सरकारी कुएं पर पहुंची थी, लेकिन वहां ऊंची जाति के लोगों ने उसे पानी भरने से रोक दिया. अपमान से भरी, खाली हाथ लौटती पत्नी को देख बापूराव के मन में आग लग गई. उन्होंने तय किया – अब मैं खुद कुआं खोदूंगा.
बिना मशीन, बिना जानकारी, 40 दिन की संघर्षगाथा
बिना किसी मशीन के, बिना भू-जल का सर्वे कराए, बस अपनी हिम्मत और जिद के दम पर बापूराव ताजने खुद कुआं खोदने में जुट गए. पहले दिन ही वे नजदीकी शहर मालेगांव से फावड़ा और कुदाल खरीद लाए. सुबह चार घंटे, शाम दो घंटे – बाकी वक्त मज़दूरी के लिए निकलते रहे. 40 दिन लगातार उन्होंने कड़ी धूप में मिट्टी काटी, पत्थर तोड़े और ज़मीन खोदी.
40वें दिन बह निकला पानी
उनकी तपस्या का फल आखिर 40वें दिन मिला. जमीन से पानी का सोता फूट पड़ा. बापूराव की आंखों में खुशी के आंसू थे. उनका सपना पूरा हुआ था. अब उनके घर में पानी की कमी नहीं थी. बाद में यह कुआं पूरे गांव की प्यास बुझाने लगा.
ताजने बने गांव की शान
आज बापूराव ताजने सिर्फ अपने परिवार के लिए नहीं, पूरे गांव के लिए मिसाल बन चुके हैं। जैसे बिहार के दशरथ मांझी ने पहाड़ काट कर रास्ता बनाया था, वैसे ही ताजने ने समाज की भेदभाव की दीवार तोड़ी. उनके इस काम ने ये साबित कर दिया कि अगर मन में जिद हो, तो दुनिया की कोई ताकत इंसान को रोक नहीं सकती.
सामाजिक बदलाव की मिसाल
बापूराव की ये कहानी सिर्फ पानी की नहीं है, ये सामाजिक सम्मान, हिम्मत और बदलाव की कहानी है. उन्होंने न केवल अपने घर के लिए पानी निकाला, बल्कि समाज को यह संदेश भी दे डाला कि भेदभाव की दीवारें चाहें जितनी ऊंची हों, मेहनत और जिद से उन्हें गिराया जा सकता है. यही असली संघर्ष है... जहां समाज की दीवारें गिरती हैं और इंसानियत का पानी बहता है.
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