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क्या बनने जा रहा 'इस्लामिक नाटो'? सऊदी अरब-पाकिस्तान रक्षा समझौता - भारत के लिए क्या है इसका मतलब?

सऊदी अरब और पाकिस्तान ने म्यूचुअल डिफेंस पैक्ट पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत किसी एक पर हमला दोनों पर माना जाएगा. यह समझौता इज़राइल के दोहा एयरस्ट्राइक के बाद हुआ है और इससे खाड़ी क्षेत्र, दक्षिण एशिया और वैश्विक पावर बैलेंस में बड़ा बदलाव आ गया है.

Saudi Pakistan Defence Pact: सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक ऐतिहासिक और व्यापक स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. इस समझौते के मुताबिक यदि किसी एक देश पर हमला होता है, तो उसे दोनों पर हमला माना जाएगा. इस डिफेंस पैक्ट के साथ ही खाड़ी क्षेत्र और दक्षिण एशिया की सुरक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव आ गया है.

यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब इज़राइल ने हाल ही में कतर की राजधानी दोहा पर एयरस्ट्राइक की, जिसमें हमास के कई वरिष्ठ नेता मारे गए. इस घटना से अरब देशों में गुस्सा और असंतोष भड़क गया.

एग्रीमेंट पर किसने किया साइन?

सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने रियाद में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस मौके पर पाकिस्तान आर्मी चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर भी मौजूद थे. उनकी मौजूदगी ने साफ़ संकेत दिया कि यह समझौता पाकिस्तान की सैन्य रणनीति के केंद्र में है.

क्यों अहम है यह डिफेंस पैक्ट?

अमेरिकी सुरक्षा ढांचे को चुनौती – दशकों से खाड़ी देशों की सुरक्षा अमेरिकी गारंटी पर टिकी थी. अब सऊदी–पाकिस्तान पैक्ट उस मॉडल को कमजोर करता है.

इज़राइल पर दबाव – पाकिस्तान की न्यूक्लियर अम्ब्रेला (परमाणु ताकत) अब सऊदी डिफेंस से जुड़ गई है. यह इज़राइल की आक्रामक कार्रवाई पर नया डिटरेंस है.

भारत के लिए जोखिम – पाकिस्तान को सऊदी का समर्थन मिलने से भविष्य के टकरावों (जैसे कश्मीर, आतंकवाद, पानी के अधिकार) में नई अनिश्चितता जुड़ सकती है.

चीन का फायदा – चीन पहले से पाकिस्तान का करीबी साझेदार है और सऊदी से भी गहरे आर्थिक रिश्ते रखता है. यह बदलाव बीजिंग के लिए सामरिक बढ़त साबित हो सकता है.

अमेरिका की चुनौती – वॉशिंगटन की खाड़ी में सुरक्षा गारंटर की भूमिका अब सवालों के घेरे में है.

क्या बनेगा 'इस्लामिक नाटो'?

इस समझौते ने एक बार फिर उस विचार को हवा दे दी है जिसे 'इस्लामिक नाटो' या 'अरब नाटो' कहा जाता है. दशकों से यह आइडिया अलग-अलग संकटों में सामने आता रहा है लेकिन ठोस रूप नहीं ले पाया.

सऊदी अरब (इस्लाम के पवित्र स्थलों का रक्षक) और पाकिस्तान (मुस्लिम वर्ल्ड की एकमात्र परमाणु शक्ति) का जुड़ाव इसे और मजबूत करता है.

कतर पर हमले के बाद वह भी ऐसे डिफेंस गारंटी की तलाश कर सकता है.

तुर्की लंबे समय से इस्लामी सैन्य गठबंधन की वकालत करता रहा है.

हालांकि, ईरान–सऊदी, तुर्की–मिस्र और कतर–यूएई जैसी दुश्मनियों की वजह से इस्लामिक नाटो की राह अब भी कठिन है.

इज़राइल के लिए नया डिटरेंस डिलेम्मा

इज़राइल और सऊदी अरब के बीच हाल ही में बैक-चैनल वार्ता और आंशिक सामान्यीकरण की कोशिशें चल रही थीं. लेकिन पाकिस्तान के साथ यह डिफेंस पैक्ट उन कोशिशों को ठंडे बस्ते में डाल सकता है.

अब इज़राइल को इस स्थिति का सामना करना होगा:

किसी भी गल्फ देश पर हमला अब पाकिस्तान की प्रतिक्रिया को भी ट्रिगर कर सकता है.

पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं – यानी इज़राइल पहली बार नॉन-ईरान परमाणु खतरे के साये में है.

भविष्य में कोई भी एकतरफा कार्रवाई इज़राइल के लिए कहीं ज्यादा महंगी साबित हो सकती है.

भारत की मुश्किल डिप्लोमेसी

भारत के लिए यह समझौता सबसे कठिन चुनौती बन सकता है.

भारत के रिश्ते सऊदी अरब और इज़राइल – दोनों से गहरे हैं.

पाकिस्तान को सऊदी का समर्थन मिलने से उसका रुख और आक्रामक हो सकता है.

यदि सऊदी अरब पाकिस्तान को आर्थिक मदद, ऑयल सब्सिडी या हथियारों में सहायता देता है तो भारत को बेहतर तैयार विरोधी का सामना करना पड़ सकता है.

MEA (विदेश मंत्रालय) ने कहा है कि भारत इस समझौते के प्रभावों का अध्ययन करेगा और राष्ट्रीय सुरक्षा को किसी भी हाल में सुरक्षित रखेगा.

भारत की संभावित रणनीति:

  • इज़राइल के साथ डिफेंस डील और साझेदारी को और मजबूत करना.
  • मिसाइल और बॉर्डर डिफेंस सिस्टम को तेजी से मॉडर्नाइज करना.
  • खाड़ी देशों के साथ बैक-चैनल डिप्लोमेसी ताकि संतुलन कायम रहे.

अमेरिका हाशिए पर, चीन की चुपचाप बढ़त

अमेरिका का लंबे समय तक खाड़ी में सुरक्षा गारंटर होना अब चुनौती में है.

दोहा स्ट्राइक पर उसकी चुप्पी को अरब देशों ने मूक सहमति माना.

चीन पहले से ही पाकिस्तान का सबसे करीबी पार्टनर है और सऊदी अरब में बेल्ट एंड रोड, ऊर्जा और हथियार डील्स के जरिए प्रभाव बढ़ा रहा है.

यह पैक्ट वॉशिंगटन की पकड़ कमजोर करता है और बीजिंग की स्थिति मजबूत.

आगे क्या?

अमेरिका का रीबैलेंसिंग – खाड़ी में भरोसा बहाल करने की कोशिश करेगा.

सऊदी का संतुलन – भारत और अमेरिका से रिश्ते बनाए रखते हुए मुस्लिम दुनिया का नेतृत्व मजबूत करने की कोशिश.

पाकिस्तान का उदय – खुद को मुस्लिम स्टेट्स का रक्षक बताने के लिए और अधिक आक्रामक कूटनीति.

संभावित डोमिनो इफेक्ट – कतर, तुर्की और अन्य गल्फ स्टेट्स भी ऐसे पैक्ट की ओर बढ़ सकते हैं.

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